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बाढ़ बचाव,सिंचाई और ऊर्जा उत्पादन के लिए बना था 1953 में बांध,अब पर्यटन केंद्र बनकर उभरा तिलैया डैम

तिलैया डैम की हसीन वादियों के बीच सूर्यास्त का नज़ारा होता है मनमोहक

कोडरमा। तिलैया डैम बांध का उद्घाटन 1953 में आज़ाद भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने किया था। दरअसल, दामोदर नदी पर बांध बनाने का फ़ैसला बाढ़ बचाव, सिंचाई और ऊर्जा उत्पादन के लिए बना था। तिलैया डैम से डीवीसी हाइड्रो तकनीक से बिजली उत्पादन करती है। 69 साल में तिलैया डैम का नज़ारा बदल गया है, अब तिलैया डैम को केवल बिजली उत्पादन के लिए महज एक बांध के रूप में नहीं देखा जाता। तिलैया डैम 7 दशक बाद अपने स्वरूप में लगातार बदलाव कर रहा, तिलैया डैम अब कोडरमा जिले के बड़े और प्राकृतिक मनोरम दृश्य के रूप में पर्यटक स्थल के रूप में विकसित हो रहा। अब भी यहां पर्यटक क्षेत्र में असीम संभावनाएं है। प्रशासन भी लगातार यहां सुविधाओ को बढ़ाने में जुटा हुआ है। प्रशासन ने तिलैया डैम परिसर में विकास कार्यों को धरातल पर उतारा है, लेकिन अब भी बहुत कुछ करना बाकी है। तिलैया डैम कोडरमा जिले का पिकनिक स्पॉट और पर्यटन क्षेत्र का केंद्र बनकर कुछ सालों में उभरा है। यहां लगातार विकास कार्य को सरकारी योजना से धरातल पर उतारा जा रहा है। जिला प्रशासन भी कोडरमा के पिकनिक स्पॉट और धार्मिक स्थलों को संवारने में जुटा है। प्रशासन ने हाल ही में तिलैया डैम में वॉटर स्पोर्ट्स का आयोजन किया था। इस आयोजन में भारी भीड़ जुटी थी। अब यहां बड़े पैमाने पर वॉटर स्पोर्ट्स कराने की योजना बन रही है। तिलैया डैम का नज़रा बेहद आकर्षक है, यहां पहुंचना भी सुगम है। इसलिए प्रशासन और पर्यटन विभाग तिलैया डैम का कायाकल्प बदलने के लिए सुविधाओ को लगातार बढ़ा रही। भला सुविधा बढ़े भी क्यों ना… अपना तिलैया डैम की खूबसूरती कम थोड़े ही ना है…. नया साल को लेकर तिलैया डैम में भारी भीड़ जुटती है। प्रशासन ने डैम में सुरक्षा और वोटिंग को लेकर खास निर्देश जारी कर दिया है। बिना लाइफ जैकेट के इसबार वोटिंग कोई नही कर पायेगा।

डैम पार बसता था कई गांव, डेंगी (काठ का नाव) से आते थे लोग तिलैया डैम बाज़ार

तिलैया बांध के एक छोर पर तिलैया डैम, छोटकी धमराई, बड़की धमराय है। जबकि डैम के दूसरे छोर पर कई गांव बसता है,जो सब्जी और फसल बेचने तिलैया डैम आते थे। यही नहीं दुर्गापूजा मेला भी डेंगी पर सवार होकर डैम पार कर तिलैया डैम बाज़ार आते थे। ग्रामीणों की मानें तो, एक बार डेंगी (काठ की नाव) से डैम पार करने के दौरान डेंगी पलट गया और 19 लोगो की मौत डूबने से हो गई थी, जबकि 2 लोग तैर कर पार कर जान बचाई थी। इन गांवों के लिए तिलैया डैम ही मुख्य बाजार था। जानकारी के अनुसार डैम के पार बुंडू, खैरासापुर, माधोपुर, पड़ीरमा, तेलोडीह,पुढीडीह सिमपुर गांव बसते थे। अब ये लोग जरूरत पड़ने पर ही डबल डेकर या मोटर वोट से कभी कभी सफर कर तिलैया डैम आते है। अब इन ग्रामीण क्षेत्रों के अधिकांश लोग अब गुड़ियो-बिजैया सड़क मार्ग का इस्तेमाल करते है। जबकि फसल या सब्जी बेचने करियातपुर बाजार का रुख करते है।

तिलैया डैम मे सूर्यास्त का नजारा होता है मनमोहक

तिलैया डैम में शाम के समय सूर्यास्त का नज़ारा काफी मनमोहक होता है। सूर्यास्त के समय प्रकृति अपनी छटा बिखेरती है, यह नजारा काफी मनमोहक होता है। तिलैया डैम में लबालब भरे पानी के किनारे सूर्यास्त का नज़ारा अद्भुत प्रतीक होता है। खासकर नए साल के पहले दिन का सूर्यास्त प्रकृति के सौंदर्य में चार चांद लगा देती है। नए साल पर सूर्यास्त का नज़ारा देखने तिलैया डैम के बांध पर सैंकड़ों लोग होते है, जो इस नजारे को अपने कैमरा और फोन से उतारते नजर आते है। पेड़ की टहनियां, पहाड़ों और तिलैया डैम के लबालब भरे पानी के बीच नाव और सूर्यास्त के समय सूर्य की लालिमा लोगों को आकर्षित करती है।

69 साल का सफर तय कर चुका तिलैया डैम, लेकिन आज भी विस्थापित मायूस है

तिलैया डैम के बने 69 साल हो गए। 7 दशकों के सफर में तिलैया डैम के आसपास विकास भी हुआ है, लेकिन आज भी विस्थापित परिवार मायूस है। जिन लोगों की जमीन पर डैम बना, वो आज भी हासिए पर है। डैम बनने का फायदा ग्रामीणों को हुआ, इससे इंकार नहीं किया जा सकता। डीवीसी सामाजिक एकीकरण कार्यक्रम के तहत आसपास के इलाके में सड़क, पीसीसी रोड तो बना दी। लेकिन स्थानीय लोगों को रोजगार देने के मामले में कहीं ना कहीं पीछे रह गई।

क्या कहते है स्थानीय ग्रामीण

उरवां में रहने वाले समाजसेवी संतोष पासवान का कहना है की डैम बनने से बिजली घर घर पहुंची है, सिंचाई के लिए भी पानी मिला, मछली पालन का भी बढ़ावा मिला है। डैम में डबल डेकर और मोटर वोट चलाकर रोजगार का साधन भी मिला है। लेकिन डीवीसी और विस्थापित के बीच एग्रीमेंट के अनुसार फ्री बिजली, पानी, शिक्षा का पालन नहीं हो पाया। पुनर्वास के मामले में भी डीवीसी शत प्रतिशत खरा नहीं उतर पाई। स्थानीय और विस्थापितों का दर्द का ईलाज डीवीसी नही कर पाई। बाहरी लोगो को रोजगार जिस रफ्तार से दिया गया, उस रफ्तार से लैंडलूजर को रोजगार नहीं मिला। लैंड लूजर को जमीन के बदले जमीन मिला। जमीन का पर्चा भी मिला, लेकिन तकनीकी कारणों से मालिकाना हक नही मिला।

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