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अमेरिका राष्ट्रपति ट्रंप का धमकी भारत के स्वाभिमान और मर्यादा पर हमला: संजय पासवान

कोडरमा – ट्रंप पुराने दिनों के तानाशाहों की तरह दूसरे देशों के साथ पेश आने में लगे हैं. इस भयानक मानवीय त्रासदी व संकट के दौर में भी वे दुनिया का चौधऱी बनते नजर आ रहे हैं. भारत के खिलाफ जिस भाषा का प्रयोग उन्होंने किया है, वह बताता है कि अमरीका अपनी कूटनीतिक और वैदेशिक नीति की मर्यादा का उल्लंघन करता है. उक्त बयान माकपा राज्य सचिवमंडल सदस्य संजय पासवान ने देते हुए कहा कि ट्रप ने एंटी मलेरिया दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के नाम पर खेल किया है. उन्होंने भारत को इस दवा की आपूर्ति रोके जाने को एक ऐसा मामला बना दिया है जो भारत के स्वाभिमान और मर्यादा पर हमला से कम नहीं है. दुनिया के लगभग सभी देशों की प्राथमिकता इस समय अपने नागरिकों के जीवन की रक्षा करने की है. ऐसे में भारत को यह धमकी देना कि उसने आपूर्ति शुरू नहीं की तो उसके खिलाफ जवाबी कार्रवाई की जाएगी, एक सामान्य घटना नहीं है. हालांकि भारत सरकार ने 25 मार्च को जब निर्यात पर रोक लगायी थी तब उसने कहा था कि वह दुनिया के किसी भी देश को मानवीय आधार पर इस दवा से वंचित नहीं करेगा. भारत सरकार ने हालांकि अब इस दवा का अमरीका निर्यात मानवीय आधार पर करने का फैसला ले लिया है. लेकिन भारत सरकार को भी धमकी का जवाब देना होगा। उन्होंने कहा कि मशहूर दार्शनिक नोम चोम्स्की ने ट्रप को मानवता का अब तक का सबसे बड़ा खतरा बता चुके हैं. अमरीका कोरोना वायरस की जंग में दूसरे देशों के मानवीय मूल्यों और अधिकारों के सवाल को भी भूल गया है. ग्लोबल इकोनामी का अगुवा समझनेवाले इस देश ने पिछले अनेक सालों से दूसरे देशों के व्यापार अधिकार को प्रभावित किया है. लातिनी अमरीका के कई देशों की संप्रभुता पर उसने हमला किया है. और इरान पर इस समय भी जब मानवता कराह रही है, कड़े प्रतिबंधों की जंजीर को बांधे रखा है. अमरीका में बढती मौतों के आकड़े ने ट्रंप की चुनावी संभावनाओं को कमजोर किया है. दुनिया के उन चंद नेताओं में ट्रंप भी शामिल है जिनके लिए चुनाव जीतने के लिए इस अवसर का लाभ उठाने की ललक बनी रहती है. दुनिया ऐसे नेताओं के कारण भी किसी ऐसे विश्व आर्डर को विकसित नहीं कर पा रही है जिसमें देशों की संप्रभुता को सम्मान से रूप से देखा जाय.अमरीका की आर्थिक त्रासदी के संदर्भ में जो अनुमान लगाए जा रहे हैं वह डरावनी तस्वीर पेश कर रही हैं. दुनिया के तमाम देशों को कारपारेट घरानों के संदर्भ में नया नजरिया अपनाना ही होगा. भारत के संदर्भ में नोबल विजेता अभिजीत विनायक जो एक उदार अर्थशास्त्री हैं, उनकी चेतावनियां भी चर्चा में आ चुकी हैं. इसके पहले ज्यां द्रेज और रघुराम राजन ने भारत के संदर्भ में व्यापक नजरिया पेश किया है. राजनीतिक अर्थशास्त्रियों का एक दूसरा तबका भी है जो मानता है कि ग्लोबलाइजेशन की परिघटना ही आज की त्रासदी की जड़ में है.

तमाम बहसों के बीच दुनिया की तामम वर्चस्व वाली ताकतें और उनके नेताओं को नए सिरे से विचार करने की जरूरत पर हर तरफ से जोर दिया जा रहा है. क्योंकि एक तथ्य तो प्रमाणित हो गया है कि कोरोना वायरस संकट व विपदा से निपटने में कई नेताओं ने कोताही दिखयी है. शुरूआत में तो ट्रंप इसका मजाक ही उडाते रहे. भारत सरकार ने तो 12 मार्च तक इसे कोई बड़ा खतरा माना ही नहीं था. यूरोप के देशों के सामाजिक दायित्व के संदर्भ को भी कोरोना महामारी ने नये सिरे से विचार करने का अवसर दिया है. भारत को अपनी पॉलिसी में बड़े बदलाव करने की जरूरत है.

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