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शिक्षा का व्यापारीकरण व निजीकरण का रास्ता है नई शिक्षा नीति (एनइपी): संजय पासवान

कोडरमा। कर्मभूमी मे मुंशी प्रेमचंद ने लिखा था कि “यह किराये की तालीम हमारे कैरेक्टर को तबाह किये डालती है. हमने तालीम को भी एक व्यापार बना लिया है. व्यापार मे ज्यादा पूंजी लगाओ ज्यादा नफा होगा। तालीम मे भी ज्यादा खर्च करो ज्यादा ऊंचा ओहदा पाओगे. मै चाहता हुँ ऊँची से ऊँची तालीम सबके लिए मुफ्त हो ताकि गरीब से गरीब आदमी ऊँची से ऊँची लियाकत हासिल कर सके और ऊँचे से ऊँचा ओहदा पा सके.यूनिवर्सिटी के दरवाजे मै सबके लिए खुला रखना चाहता हुँ. सारा खर्च गवर्नमेंट को करना चाहिए। मुल्क को तालीम की उससे कहीं ज्यादा जरूरत है जितनी फौज की” प्रेमचंद की 140वीं जयंती पर उन्हें याद करते हुए डीवाईएफआई के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और झारखंड के राज्य सचिव संजय पासवान ने नई शिक्षा नीति (एनइपी) पर कहा कि भारतीय शिक्षा का व्यापारीकरण व निजीकरण की ओर ले जाने का रास्ता है. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने नई शिक्षा नीति को मंजूरी दे दी। इसमें स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक मे कई बड़े बदलाव किये गए हैं। सरकार इसे भारतीय शिक्षा व्यवस्था में एक मील का पत्थर बता रही है।

जबकि शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े हितधारक चाहे वो छात्र ,शिक्षक या फिर शिक्षा से जुड़े शिक्षाविद सभी इसकी आलोचना कर रहे है। वो इसे एक तरह से शिक्षा की गुणवत्ता में कमी और निजीकरण करने की साज़िश बता रहे है। उनका कहना है कि नई शिक्षा नीति देश में शिक्षा व्यवस्था को और कमजोर करेगी और गरीब जनता जिसका बड़ा तबका पहले से ही शिक्षा से बाहर है, उसे शिक्षा में समाहित करने के बजाए उन्हें शिक्षा से और दूर करेगी.कहा जा रहा है कि मल्टीपल एग्जिट छात्रों की भलाई के लिए है। सच यह है कि अब तक जो कॉलेज एवं विश्वविद्यालय थे अब वही शिक्षा की दुकानें कहलाएंगी। इसी को ग्रेडेड ऑटोनोमी कहा जा रहा है। जैसे हॉटल बुक करते समय ‘मेक माई ट्रिप’ में ‘स्टार’ देखकर ‘रेट’ तय होता है, वैसे ही इन कॉलेज एवं विश्वविद्यालय में भी स्टार लगेंगे। वैसा ही रेट तय होगा इनकी दुकान का। ऐसे में जिसकी जेब में जितना पैसा है, वह उतना ही माल खरीदकर चलता बने। यही है मल्टीपल एग्जिट। दो सेमेस्टर लायक पैसा है या पाँच या आठ यह आपकी हैसियत पर निर्भर हैं. ग्रेडेड ऑटोनोमी, बोर्ड ऑफ गवर्नर जो प्रशासनिक से लेकर वित्तीय और कर्मचारियों एवं शिक्षकों की सेवा शर्तों को भी तय करेगा। कोर्स क्या होगा, फीस कितना लगेगा यह भी तय करेगा। क्रेडिट ट्रांसफर एवं मॉड्यूलर कोर्स। एक संस्थान से दूसरे संस्थान में जाने की आज़ादी। कहीं एक सेमेस्टर तो कहीं दो सेमेस्टर। मन चाहा तो एक साल ड्रॉप कर दिया। क्रेडिट बैंक में आपका जब जितना क्रेडिट हो गया उसके हिसाब से आपको डिग्री मिलेगी। इसके मूल में बस यह है कि जब जितना पैसा आपकी जेब में है, तब आप उतना ही क्रेडिट लें। पैसा खत्म पढ़ाई खत्म। शिक्षक को तभी नौकरी पर रखा जाएगा जब उस कोर्स के छात्र होंगे। जितने छात्र उतना ही उनका पैसा।

मोदी सरकार द्वारा लायी गयी नई शिक्षा नीति शिक्षा को विदेशी और देशी कॉरपोरेट के लिए मुनाफ़ा कमाने के साधन के रूप में तब्दील करने की साजिश है. हमारे संविधान में शिक्षा समवर्ती सूची में है। केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा दर्ज सभी आपत्तियों और विपक्ष को दरकिनार कर नई शिक्षा नीति लागू करना संविधान का घोर उल्लंघन है। मसौदा को संसद की मेज पर रखा जाना चाहिए। जिस पर संसद सदस्य अपनी राय दे सके. उसके बाद ही एनइपी लागू होना चाहिए।

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