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पिछले साठ वर्षों से उच्च माध्यमिक शिक्षा का प्रकाश-स्तम्भ है सैनिक स्कूल तिलैया

कोडरमा।। देश के विख्यात शिक्षण संस्थाओं में शीर्षस्थ सैनिक स्कूल तिलैया सदा से ही अग्रगण्य स्कूलों में एक रहा है। इसके कीर्तिमानों की एक लंबी परंपरा रही है और अपनी स्थापना काल से लेकर साठ वर्षों बाद, ‘हीरक जयंती वर्ष’ को मनाते समय भी यह परंपरा कायम है।इस स्कूल का इतिहास जितना गौरवपूर्ण रहा है उतना ही दिलचस्प इसकी स्थापना का इतिहास भी रहा है। भारत-चीन युद्ध के बाद स्वप्नद्रष्टा प्रथम प्रधानमंत्री पं० जवाहरलाल नेहरू को लगा कि हमारी रक्षा व्यवस्था चुस्त और दुरुस्त बने और इसी चिंतन में उन्होंने हर राज्य में ऐसे स्कूलों की कल्पना की जो प्रत्येक छात्र में शिक्षा के साथ-साथ सैन्य-मानसिकता का भी संचार करें तथा इन स्कूलों से समाज के हर वर्ग को ऐसी शिक्षा मिले जिससे वे सामाजिक, मानसिक और बौद्धिक तौर से तैयार होकर राष्ट्र की रक्षा के लायक बने और भारतीय सशस्त्र सेनाओं के अधिकारी वर्ग में क्षेत्रीय असंतुलन भी दूर हो सके।

इसी पावन समाजनिष्ठ भावना के साथ तत्कालीन रक्षामंत्री श्री वी. के. कृष्णमेनन ने सैनिक स्कूलों की स्थापना का सफर शुरू कर दिया। उसी कड़ी में बारहवें सैनिक स्कूल के रूप में, अविभाजित बिहार के उत्तरी छोटा नागपुर की पठारियों के बीच तिलैया डैम के निकट, बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री के.बी.सहाय तथा संस्थापक प्राचार्य लेफ्टिनेंट कर्नल एल.ई.जी. स्मिथ के सत्प्रयासों से 16 सितम्बर 1963 को सैनिक स्कूल तिलैया की नींव रखी गयी।तब सीमित संसाधनों और बहुत कम संख्या में शिक्षकों और कर्मचारियों की वह यात्रा, आज अपने अनुभव और परिपक्वता के साठ वर्ष पूरे करके ‘हीरक जयंती वर्ष’ में प्रवेश कर चुकी है और आज न केवल यह कि, तीन सेवारत सैन्य-अधिकारी, पाँच एनसीसी-पीटीआई स्टॉफ, 45 अकादमिक स्टॉफ, 26 प्रशासनिक व 75 से अधिक सामान्यकर्मी के साथ 875 सैन्य-छात्र, पचीसाधिक डे-स्कॉलर वाला यह स्कूल भारत के सभी स्कूलों में सबसे बड़ा है बल्कि यह विद्यालय पिछले साठ वर्षों से अनवरत उच्च-माध्यमिक शिक्षा का प्रकाश-स्तम्भ बना हुआ है।

सैनिक स्कूल तिलैया के इन सभी प्रयत्नों का प्रतिफल ही है कि यहाँ के सैन्य-छात्र, जीवन और समाज के हर क्षेत्र में इस विद्या-मंदिर, झारखंड-भूमि और देश का परचम लहराते रहे हैं. चाहे राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में प्रवेश की बात हो या फिर प्रशासनिक सेवा, चिकित्सा या अभियांत्रिकी, या फिर राजनीति, समाजसेवा, फिल्म या न्याय-विभाग। यहाँ के छात्रों ने समाज के सभी क्षेत्रों में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है और राष्ट्र के विकास में सतत् योगदान देकर स्कूल की गौरवशाली परम्परा को बनाए रखा है।

सैनिक स्कूल तिलैया को ‘राष्ट्रीय रक्षा अकादमी’ परीक्षा में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए दो बार ‘रक्षा मंत्री ट्रॉफी’ और लगातार शैक्षणिक उत्कृष्ठता के लिए अन्य कई बार रक्षा राज्य मंत्री ‘मेरिट प्रमाण–पत्र’ से सम्मानित किया जा चुका है. 16 सितम्बर 1963 को अपनी स्थापना के बाद से सैनिक स्कूल तिलैया ने बड़ी संख्या में कुल 800 से अधिक ऐसे सैन्य-छात्र तैयार किए हैं जिन्होंने सीधे तौर पर ‘राष्ट्रीय रक्षा अकादमी’ की मेधा-सूची में नाम लिखाया है. जबकि मेधावी छात्रों की एक बहुत बड़ी संख्या है जिन्होंने समाज तथा जीवन के अति-महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में कीर्ति हासिल की है और नित नए मानक स्थापित कर रहे हैं।

निःसंदेह इसका श्रेय सैनिक स्कूल में पदासीन अनुभवी सैन्य-अधिकारियों के दूरदर्शी नेतृत्व और कुशल शिक्षण परम्परा को जाता है. और यह गर्व का विषय है कि सैनिक स्कूल तिलैया के कुल छः शिक्षक-गण राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किए जा चुके हैं. ज्ञातव्य हो कि इसी वर्ष सन् 2023 के लिए शिक्षक-दिवस के शुभ अवसर पर 05 सितम्बर को यह पुरस्कार, निवर्तमान वरिष्ठ अध्यापक श्री मनोरंजन पाठक को प्रदान किया गया है।

29 जुलाई 2020 को फ्रांस से बहु-प्रतीक्षित राफेल लड़ाकू विमान लाना हो तो यहीं के जाँबाज ग्रुप कैप्टन रोहित कटारिया का नाम आता है, आजादी के अमृत-पर्व पर सम्पूर्ण ‘पृथ्वी यात्रा’ पर निकली ‘आई.एन.एस. तरंगिणी’ को यहीं के पूर्व सैन्य-छात्र कमांडर प्रवीण ने नेतृत्व दिया और और अधिक क्या; ‘परम विशिष्ट सेवा मेडल’, ‘अति विशिष्ट सेवा मेडल’ से अलंकृत वर्तमान एयर-मार्शल सूरज कुमार झा यहीं के पूर्व छात्र हैं. जबकि भारतीय प्रशासनिक सेवा के अनन्तर यदि कई राज्यों के सचिव/संयुक्त सचिव की बात की जाए तो यहीं के सैन्य-छात्र अपना परचम लहरा रहे हैं।

अभी हाल ही में, सैनिक स्कूल सोसायटी के ‘मध्य-क्षेत्र क्रीडा प्रतिस्पर्धा 2023-24’ जिसमें कि चार राज्यों की कुल सात टीमें प्रतिभागी रहीं, उनमें सैनिक स्कूल तिलैया समग्रतः द्वितीय विजेता होने के पश्चात, अखिल सैनिक स्कूलों ‘इन्टर-ज़ोनल प्रतिस्पर्धा’ से आगे बढ़ते हुए, राष्ट्र स्तरीय ‘सुब्रतो-कप’ का प्रतिभागी बन रहा है।

16 सितम्बर 2023 को राष्ट्र का गौरव – सैनिक स्कूल तिलैया

अपनी स्थापना की ‘हीरक जयंती’ मना रहा है. स्थापना के इस साठवें वर्ष की तैयारियां चरम पर हैं और इसका उत्साह चारों तरफ दिख रहा है. आशा है कि विकास और गौरव के और भी सुनहरे अध्याय, सैनिक स्कूल तिलैया परिवार भविष्य में भी लिखता रहेगा।

चौड़ी छाती पर तिरंगा लिए अमर सपूतों की अमर गाथा : सैनिक स्कूल तिलैया परिवार

किसी भी संस्थान का एतिहासिक होना बहुत बड़ी बात है किन्तु इतिहास-निर्माण मे छिपे दर्द को वह मातृ संस्थान ही समझ सकता है। ‘हीरक जयंती वर्ष’ मना रहे सैनिक स्कूल तिलैया ने भी इन साठ सालों मे अपने ढेर सारे लाल खोए हैं. लेफ्टिनेंट शैलेश कुमार (जून 1984) ऑपरेशन ब्लू स्टार, मेजर अमित कुमार, मेजर संतोष कुमार, कैप्टन मनोज कुमार(अक्टूबर 1987) ऑपरेशन पवन, लेफ्टिनेंट राजेश कुमार, कैप्टन निर्भय कुमार सिंह (फरवरी 1989) ऑपरेशन पवन, कैप्टन संजय, मेजर रविरंजन कुमार, मेजर आशुतोष ठाकुर (1996), मेजर संजीत चौधरी, मेजर बृजकिशोर शर्मा (1997), मेजर चंद्रभूषण द्विवेदी (जुलाई 1999) ऑपरेशन विजय, ॐ कुमार सिंह (2003) ऑपरेशन पराक्रम और मेजर अमिताभ राज (2009) ने युद्ध-भूमि में चौड़ी छाती के साथ अपनी वीर-गाथा लिखी है। इन सपूतों को खोने की पीड़ा सैनिक स्कूल तिलैया हमेशा महसूस करता रहता है।

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