मोदी सरकार की 3 कृषि क़ानून के खिलाफ निकला किसान जागरण जत्था,किसानों के लिए मौत का फरमान-मोर्चा Jharkhand Koderma Koderma live by Ravi - January 7, 2021January 7, 20210 झुमरी तिलैया – मोदी सरकार की तीन कृषि कानून के खिलाफ देशभर मे चल रहे किसान आंदोलन के समर्थन मे किसान संगठनों के देशव्यापी 6 से 20 जनवरी तक देश जागृति करने के आह्वान पर किसान संघर्ष मोर्चा कोडरमा के बैनर तले किसानों व ग्रामीणों को जगाने के लिए पहले चरण मे तीन दिवसीय किसान जागरण जत्था निकाला गया. कार्यक्रम के पहले दिन चंदवारा प्रखंड के चंदवारा बाजार, भोण्डो चौक, उर्मा मोड़ और तिलैया डैम साप्ताहिक बाजार मे प्रचार अभियान चलाकर केंद्र सरकार की कॉरपोरेट पक्षीय तीन कृषि क़ानून का किसानों पर होने वाले दुशप्रभाव के बारे मे बताया गया और पर्चा वितरित किया गया. जगह जगह हुई नुक्कड़ सभाओं को सीटू नेता संजय पासवान, जिप सदस्य महादेव राम, किसान सभा के असीम सरकार, सिविल सोसायटी के उदय द्विवेदी, चरणजीत सिंह, युवा नेता सईद नसीम, दामोदर यादव, प्रकाश अम्बेडकर आदि ने सम्बोधित किया. वक्ताओं ने कहा कि मोदी सरकार के द्वारा लाया गया कृषि कानून किसान के लिए मौत का फरमान है. डेढ़ माह से दिल्ली के सभी बॉर्डरों पर लाखों किसान सड़कों पर हैं. कड़कड़ाती ठंढ मे भी वे डटे हुए हैं. जहां अब तक 55 किसान शहीद हो गये हैं. लेकिन सरकार इनकी आवाज को अनसुनी कर रही है. आजादी के बाद यह पहला मौका है, जब छोटे-बड़े लगभग 500 किसान संगठन एक साथ आयें हैं और क़ृषि क़ानून के खिलाफ एकजुट हैं. केंद्र सरकार अडाणी और अंबानी जैसे बड़े उद्योगपतियों के निर्देश पर काम कर रही है, क्योंकि इन कानूनों के सारे फायदे कॉरपोरेट को ही मिलेंगे। उन लोगों ने हजारों एकड़ जमीनें खरीदने के साथ गोदाम बनाने शुरू कर दिये हैं। यही वजह है कि सरकार इन कानूनों को रद्द करना नहीं चाहती। 70 सालों से चल रहे 44 श्रम कानूनों को एक झटके में समाप्त कर दिया और मजदूरों का हक छीन लिया. सरकार किसान संगठनों से वार्ता को लंबा खींच रही है तथा किसानों की बात सुनने की बजाय अपनी बातें थोपना चाह रही है. ऐसे में आंदोलन जारी रखना किसानों की मजबूरी है। खेती-किसानी हमारी संस्कृति है और जीवन पद्धति भी है, सरकार जबरदस्ती किसानों को व्यापारी बनाना चाहती है। इसलिए किसान विरोधी तीनों क़ृषि कानूनों को रद्द करना ही किसानों के हित में होगा। कानून वापस होने तक किसानों का संघर्ष जारी रहेगा.