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गर्मी में कोडरमा का बेंदी बन जाता है,स्विजरलैंड! ढाई सौ साल पुरानी बरगद पेड़ की कहानी

बेंदी में बरगद पेड़ देख हैरत में पड़ जाते है लोग,ढाई सौ साल पुराना है पेड़, एकड़ में फैला है पेड़ का तना।

कोडरमा। पीपल पेड़ के बाद बरगद का पेड़ ही है, जो आस्था और पौराणिक रूप से अलग महत्व रखता है। विश्व का सबसे घने क्षेत्रफल में बरगद का पेड़ कलकत्ता में है, लेकिन कोडरमा जिले के चंदवारा प्रखंड के बेंदी गांव का वटवृक्ष यानी बरगद का पेड़ का क्षेत्रफल भी कम नहीं है, यह बरगद का पेड़ लगातार अपना क्षेत्रफल बढ़ा रहा है। दरअसल,बेंदी के इस बरगद पेड़ की उम्र दो से ढाई सौ साल पुरानी बताई जा रही है। इस पेड़ की सैंकड़ों जटा, जमीन से जुड़ कर हर साल नए बरगद की पेड़ को जन्म देती है। गर्मी के दिनों में इस इलाके को स्विजरलैंड कहा जाता है, क्योंकि तपती गर्मी में भी पेड़ के नीचे ठंठक होती है। यही कारण है की पेड़ की छांव में ही पंचायत से लेकर राजनीतिक बैठके, बिना टेंट लगाकर की जाती है। विशालकाय वटवृक्ष से इस गांव के लोगों की आस्था भी जुड़ी है, जहां हर पर्व त्योहार, शादी -विवाह पर इस वटवृक्ष की पूजा की जाती है। गांव के लोग इस वटवृक्ष को अपने पूर्वज की तरह सम्मान करते है। ग्रामीणों की माने, तो बरगद का पेड़ 200-250 साल पुराना है और यह विशाल पेड़ करीब 20 कट्ठा में फैला है, जबकि इस पेड़ को लोग बड़का गोसाई के रूप में पूजा अर्चना करते है। बेंदी जाने के बाद जो भी लोग इस बरगद की पेड़ को देखते है, सभी हैरत में पड़ जाते है। इस पेड़ के नीचे जानेपर जंगल में होने का एहसास होता है,साथ ही ठंठक महसूस होती है। शाम, को चिड़ियों की चहच आहट एक अलग वातावरण का निर्माण करती है। इस पेड़ को संरक्षण और इस स्थल को प्रशासनिक स्तर पर विकास करने की जरूरत है, क्योंकि बरगद का पेड़ बेंदी इलाके को पर्यावरण के संतुलित करती है। पर्यावरण रक्षा, संरक्षण और धार्मिक, पौराणिक स्थल के रूप में बेंदी के इस बरगद पेड़ के इर्द गिर्द विकास योजनाओं के जरिए पर्यटन को बढ़ावा दी जा सकती है।

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