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NEP-2020 : भारतीय शिक्षा का केंद्रीकरण, सांप्रदायिकता और व्यवसायीकरण बढ़ेगा

राम रतन अवध्या,अध्यक्ष,बीजीवीएस,कोडरमा

rr awadhya[president bgvs]

कोडरमा। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति को मंजूरी दे दी है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदल कर शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है। देश में नई शिक्षा नीति को सरकार ने लागू कर दिया। नई शिक्षा नीति का पैटर्न 5$3$3$4 होगा। अर्थात 5 वर्ष तक प्री स्कूलिंग से कक्षा 2 तक अगला 3 वर्ष कक्षा 3, 4 और 5 अगले 3 वर्ष कक्षा 6, 7 और 8 एवं अंतिम 4 वर्ष कक्षा 9, 10, 11 और 12 , उच्च शिक्षा में ग्रेजुएशन चार वर्ष का होगा। साथ ही एम फील की डिग्री को ही समाप्त कर दिया गया है। शिक्षा नीति का विस्तृत अध्ययन से पता चलता है कि इससे शिक्षा में कोर्पोरेटाइसेशन को बढ़ावा मिलेगा,साथ ही केंद्रीकरण का खतरा भी बढ़ेगा। इस शिक्षा नीति में वोकेशनल कोर्सज के नाम पर गरीब और निचले तबके के लोग मुख्य धारा से अलग हो जाएंगे। नई शिक्षा नीति स्किल इंडिया के बहाने युवकों को कम मजदूरी के दुकानों पर कम मज़दूरी के लिए धकेल दिया जाएगा। अगर 12वी पास भी कर लेंगे तो वो डॉक्टर और इंजीनियर नही बन पाएंगे। चार साल का ग्रेजुएशन प्रणाली का भारत मे पहले भी बिरोध हो चुका है। केवल एक बेहतर काम किया गया है कि मंत्रालय का नाम मानव संसाधन विकास मंत्रालय से बदलकर कर शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है। लेकिन हमें नही लगता है कि अगर किसी राज्य के मुख्यमंत्री का नाम सम्राट अशोक कर दिया जाए तो उस राज्य का रंगरूप में अशोक के साम्राज्य जैसा हो जाएगा।

गौरतलब है कि वर्तमान शिक्षा नीति 1986 में तैयार किया गया था और इसमें 1992 में संशोधन किया गया था । 2005 में भी शिक्षा नीति में बदलाव किए गए थे, जो शिक्षा को बढ़ावा देने का ये सब महत्वपूर्ण कदम थे। लेकिन सरकार द्वारा लाई गई नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 “भारतीय शिक्षा को बर्बाद करने का एक प्रयास है। इस नीति को तैयार करने के लिए संसद की पूरी तरह अवहेलना की गई है।नई शिक्षा नीति लागू करने के एकतरफा फैसला है, और इसे तब लागू किया गया जब पूरा देश कोरोना जैसे महामारी के चपेट में है। केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों से कोई भी मशवरा तक लेना उचित नही समझ। जबकि हमारे संविधान में शिक्षा समवर्ती सूची में है। केंद्र सरकार द्वारा, विभिन्न राज्य सरकारों के विरोध और आपत्तियों को दरकिनार कर एकतरफा तरीके से नई शिक्षा नीति लागू करना संविधान का पूरी तरह उल्लंघन है।

इस प्रकार की नीति पर संसद में चर्चा की जानी चाहिए थी और सरकार ने इसका आश्वासन भी दिया था। यह एकतरफा फैसला भारतीय शिक्षा व्यवस्था को बर्बाद करने के लिए लिया गया है। इस नीति से भारतीय शिक्षा का केंद्रीकरण, सांप्रदायिकता और व्यवसायीकरण बढ़ेगा। गरीबों , दलितों , पिछड़ों आदि से उच्च शिक्षा पहले जैसा ही दूर होता चला जायेगा।

राम रतन अवध्या,अध्यक्ष,बीजीवीएस,कोडरमा

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